Hindi Grammar (सीखे बहुत आसान भाषा में)
Hindi Grammar (सीखे बहुत आसान भाषा में)
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Hindi Grammar (सीखे बहुत आसान भाषा में) | Hindi Vyakaran
Hindi Grammar ( हिन्दी व्याकरण ):- हम आपको यहां पर हिन्दी व्याकरण (Hindi Vyakaran) की सम्पूर्ण जानकारी देने वाले है जो कि सभी प्रतियोगी परिक्षा कि दृष्टि से बहुत ही जरुरी हैं । और आपको यहा पर हिन्दी व्याकरण से जुड़ी हूई सभी जानकारी बहुत ही आसान भाषा में मिलने वाली हैं जिसको आप एक बार पूरा जरूर पढ़े जिससे की आपकी Hindi Grammar ( हिन्दी व्याकरण ) से जुड़े हुए सभी प्रश्नो का जावाब मिल सके।
Hindi Grammar ( हिन्दी व्याकरण ) क्या हैं?
व्याकरण (Grammar) की परिभाषा:- व्याकरण वह विद्या है जिसके द्वारा हमे किसी भाषा का शुद्ध बोलना, लिखना एवं समझना आता है।
भाषा की संरचना के ये नियम सीमित होते हैं और भाषा की अभिव्यक्तियाँ असीमित। एक-एक नियम असंख्य अभिव्यक्तियों को नियंत्रित करता है। भाषा के इन नियमों को एक साथ जिस शास्त्र के अंतर्गत अध्ययन किया जाता है उस शास्त्र को व्याकरण कहते हैं।
वस्तुतः व्याकरण भाषा के नियमों का संकलन और विश्लेषण करता है और इन नियमों को स्थिर करता है। व्याकरण के ये नियम भाषा को मानक एवं परिनिष्ठित बनते हैं। व्याकरण स्वयं भाषा के नियम नहीं बनाता। एक भाषाभाषी समाज के लोग भाषा के जिस रूप का प्रयोग करते हैं, उसी को आधार मानकर वैयाकरण व्याकरणिक नियमों को निर्धारित करता है। अतः यह कहा जा सकता है कि-
व्याकरण वह शास्त्र है, जिसके द्वारा भाषा का शुद्ध मानक रूप निर्धारित किया जाता है।
व्याकरण के अंग :
व्याकरण हमें भाषा के बारे में जो ज्ञान कराता है उसके तीन अंग हैं- ध्वनि, शब्द और वाक्य।
व्याकरण में इन तीनों का अध्ययन निम्नलिखित शीर्षकों के अंतर्गत किया जाता है-
(1) ध्वनि-विचार
(2) पद-विचार
(3) वाक्य-विचार
व्याकरण के प्रकार
(1) वर्ण या अक्षर
(2) शब्द
(3)वाक्य
(1) वर्ण या अक्षर:-
भाषा की उस छोटी ध्वनि (इकाई )को वर्ण कहते है जिसके टुकड़े नही किये सकते है।
जैसे –अ, ब, म, क, ल, प आदि।
(2) शब्द:-
वर्णो के उस मेल को शब्द कहते है जिसका कुछ अर्थ होता है।
जैसे- कमल, राकेश, भोजन, पानी, कानपूर आदि।
(3) वाक्य:-
अनेक शब्दों को मिलाकर वाक्य बनता है। ये शब्द मिलकर किसी अर्थ का ज्ञान कराते है।
जैसे- सब घूमने जाते है।
राजू सिनेमा देखता है।
हिन्दी व्याकरण की विशेषताएँ
हिन्दी-व्याकरण संस्कृत व्याकरण पर आधृत होते हुए भी अपनी कुछ स्वतंत्र विशेषताएँ रखता है। हिन्दी को संस्कृत का उत्तराधिकार मिला है। इसमें संस्कृत व्याकरण की देन भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं है। पं० किशोरीदास वाजपेयी ने लिखा है कि ”हिन्दी ने अपना व्याकरण प्रायः संस्कृत व्याकरण के आधार पर ही बनाया है- क्रियाप्रवाह एकान्त संस्कृत व्याकरण के आधार पर है, पर कहीं-कहीं मार्गभेद भी है। मार्गभेद वहीं हुआ है, जहाँ हिन्दी ने संस्कृत की अपेक्षा सरलतर मार्ग ग्रहण किया है।”
ध्वनि और लिपि
ध्वनि-
ध्वनियाँ मनुष्य और पशु दोनों की होती हैं। कुत्ते का भूँकना और बिल्ली का म्याऊँ-म्याऊँ करना पशुओं के मुँह से निकली ध्वनियाँ हैं। ध्वनि निर्जीव वस्तुओं की भी होती है; जैसे- जल का वेग, वस्तु का कम्पन आदि।
व्याकरण में केवल मनुष्य के मुँह से निकली या उच्चरित ध्वनियों पर विचार किया जाता है। मनुष्यों द्वारा उच्चरित ध्वनियाँ कई प्रकार की होती हैं। एक तो वे, जो मनुष्य के किसी क्रियाविशेष से निकलती हैं; जैसे- चलने की ध्वनि।
दूसरी वे ध्वनियाँ हैं, जो मनुष्य की अनिच्छित क्रियाओं से उत्पत्र होती है; जैसे- खर्राटे लेना या जँभाई लेना। तीसरी वे हैं, जिनका उत्पादन मनुष्य के स्वाभाविक कार्यों द्वारा होता है; जैसे- कराहना। चौथी वे ध्वनियाँ हैं, जिन्हें मनुष्य अपनी इच्छा से अपने मुँह से उच्चरित करता है। इन्हें हम वाणी या आवाज कहते हैं।
पहली तीन प्रकार की ध्वनियाँ निरर्थक हैं। वाणी सार्थक और निरर्थक दोनों हो सकती है। निरर्थक वाणी का प्रयोग सीटी बजाने या निरर्थक गाना गाने में हो सकता है। सार्थक वाणी को भाषा या शैली कहा जाता है। इसके द्वारा हम अपनी इच्छाओं, धारणाओं अथवा अनुभवों को व्यक्त करते हैं। बोली शब्दों से बनती है और शब्द ध्वनियों के संयोग से।
यद्यपि मनुष्य की शरीर-रचना में समानता है, तथापि उनकी बोलियों या भाषाओं में विभित्रता है। इतना ही नहीं, एक भाषा के स्थानीय रूपों में भी अन्तर पाया जाता है। पर पशुओं की बोलियों में इतना अन्तर नहीं पाया जाता। मनुष्य की भाषा की उत्पत्ति मौखिक रूप से हुई। भाषाओं के लिखने की परिपाटी उनके निर्माण के बहुत बाद आरम्भ हुई। यह तब हुआ, जब मनुष्य को अपनी भावनाओं, विचारों और विश्र्वासों को सुरक्षित रखने की प्रबल इच्छा महसूस हुई।
आरम्भ में लिखने के लिए वाक्यसूचक चिह्नों से काम लिया गया और क्रमशः शब्दचिह्न और ध्वनिचिह्न बनने के बाद लिपियों का निर्माण हुआ। चिह्नों में परिवर्तन होते रहे। वर्तमान लिपियाँ चिह्नों के अन्तिम रूप हैं। पर, यह कार्य अभी समाप्त नहीं हुआ है। उदाहरण के लिए, वर्तमान काल में हिन्दी लिपि में कुछ परिवर्तन करने का प्रयत्न किया जा रहा है। हिन्दी भाषा देवनागरी लिपि में लिखी जाती। है इसके अपने लिपि-चिह्न हैं।
Note:-आज हम आपको यहां पर हिन्दी व्याकरण से जुडे़ हुए सभी Topics के बारें में बातायेगें । अगर आप किसी प्रतियोगी परिक्षा कि तैयारी कर रहें हैं तो आप सभी के लिए आज का यह पोस्ट बहुत ही जरुरी हैं । जिसको आप एक बार जरूर पढ़े।
हिन्दी व्याकरण
रचना के आधार पर संज्ञा के भेद – 3
संधि के भेद – 3
स्वर संधि के भेद – 5
समास के भेद – 6
तत्पुरुष समास के भेद – 6
कारक के प्रकार – 8
वचन कितने प्रकार के है – 2
लिंग के प्रकार – 2
काल के भेद – 3
विशेषण के भेद – 4
सर्वनाम के भेद – 6
क्रिया विशेषण के भेद – 4
क्रिया के प्रकार – 2
छंद के प्रकार – 2
अलंकार के प्रकार – 3
रस कितने प्रकार के होते है – 9
शब्द शक्ति के प्रकार – 3
वाक्य के घटक होते है – 2
वर्णों की संख्या – 52
व्यंजन वर्णों की संख्या – 33
संचारीभाव की संख्या – 33
सात्विक भाव की संख्या – 8
विभाव के भेद – 2
काव्य के भेद – 2
वेद कितने है – 4
वेदांग कितने है – 6
पुराण कितने है – 18
बौद्धों के धर्म-ग्रन्थ – 3
संगीत-स्वर के भेद – 3
नायिका के भेद – 3
नायक के भेद – 4
श्रृंगार के भेद – 2
हास्य के भेद – 6
वीर-रस के भेद – 3
काव्य के गुण – 3
विद्याएँ -18
विवाह प्रकार – 8
माताएँ – 7
रत्न के प्रकार – 9
राशियाँ – 12
दिन-रात के पहर – 8
वायु के प्रकार – 5
अग्नियाँ – 3
गुण के प्रकार – 3
शारीरिक दोष – 3
लोक – 3
ऋण के प्रकार – 3
ताप – 3
युग – 4
पुरुषार्थ – 4
वर्ण – 4
दंड के प्रकार – 4
शत्रु – 6
संहिताएँ – 4
भारतीय व्यक्ति-जीवन के संस्कार – 16
ईश्वर के रूप – 2(सगुण, निर्गुण)
भाषा के प्रकार – 2
मूल स्वर के भेद – 3
व्यंजनों के प्रकार – 3
स्पर्श व्यंजन होते है – 25
उष्म व्यंजन होते है – 4
संयुक्त व्यंजन – 4
वर्णों की मात्राएँ होती है – 10
कंठ्य वर्णों की संख्या – 9
तालव्य वर्णों की संख्या – 9
प्रयोग की दृष्टि से शब्द-भेद – 2
विकारी शब्द के प्रकार – 4
अविकारी शब्द के प्रकार – 4
उत्पति की दृष्टि से शब्द-भेद – 4
व्युत्पत्ति या रचना की दृष्टि से शब्द भेद – 3
वाक्य के भेद- अर्थ के आधार पर – 8
वाक्य के भेद- रचना के आधार पर – 3
विधेय के भाग – 6
सर्वनाम की संख्या – 11
प्रत्यय के भेद – 2
रस के अंग – 4?
अनुभाव के भेद – 4
स्थायी भाव के प्रकार – 9
श्रृंगार रस के प्रकार – 2
संज्ञा के भेद – 5
रचना के आधार पर संज्ञा के भेद – 3
संधि के भेद – 3
स्वर संधि के भेद – 5
समास के भेद – 6
तत्पुरुष समास के भेद – 6
कारक के प्रकार – 8
वचन कितने प्रकार के है – 2
लिंग के प्रकार – 2
काल के भेद – 3
विशेषण के भेद – 4
सर्वनाम के भेद – 6
क्रिया विशेषण के भेद – 4
क्रिया के प्रकार – 2
छंद के प्रकार – 2
अलंकार के प्रकार – 3
रस कितने प्रकार के होते है – 9
शब्द शक्ति के प्रकार – 3
वाक्य के घटक होते है – 2
वर्णों की संख्या – 52
व्यंजन वर्णों की संख्या – 33
संचारीभाव की संख्या – 33
सात्विक भाव की संख्या – 8
विभाव के भेद – 2
काव्य के भेद – 2
वेद कितने है – 4
वेदांग कितने है – 6
पुराण कितने है – 18
बौद्धों के धर्म-ग्रन्थ – 3
संगीत-स्वर के भेद – 3
नायिका के भेद – 3
नायक के भेद – 4
श्रृंगार के भेद – 2
हास्य के भेद – 6
वीर-रस के भेद – 3
काव्य के गुण – 3
विद्याएँ -18
विवाह प्रकार – 8
माताएँ – 7
रत्न के प्रकार – 9
राशियाँ – 12
दिन-रात के पहर – 8
वायु के प्रकार – 5
अग्नियाँ – 3
गुण के प्रकार – 3
शारीरिक दोष – 3
लोक – 3
ऋण के प्रकार – 3
ताप – 3
युग – 4
पुरुषार्थ – 4
वर्ण – 4
दंड के प्रकार – 4
शत्रु – 6
संहिताएँ – 4
भारतीय व्यक्ति-जीवन के संस्कार – 16
ईश्वर के रूप – 2(सगुण, निर्गुण)
भाषा के प्रकार – 2
मूल स्वर के भेद – 3
व्यंजनों के प्रकार – 3
स्पर्श व्यंजन होते है – 25
उष्म व्यंजन होते है – 4
संयुक्त व्यंजन – 4
वर्णों की मात्राएँ होती है – 10
कंठ्य वर्णों की संख्या – 9
तालव्य वर्णों की संख्या – 9
प्रयोग की दृष्टि से शब्द-भेद – 2
विकारी शब्द के प्रकार – 4
अविकारी शब्द के प्रकार – 4
उत्पति की दृष्टि से शब्द-भेद – 4
व्युत्पत्ति या रचना की दृष्टि से शब्द भेद – 3
वाक्य के भेद- अर्थ के आधार पर – 8
वाक्य के भेद- रचना के आधार पर – 3
विधेय के भाग – 6
सर्वनाम की संख्या – 11
प्रत्यय के भेद – 2
रस के अंग – 4?
अनुभाव के भेद – 4
स्थायी भाव के प्रकार – 9
श्रृंगार रस के प्रकार – 2
नाटक में रस – 8
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हिन्दी भाषा ( भाषा किसे कहते हैं?)
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